Channel: Down To Earth
Category: Science & Technology
Tags: health mobilitycivil service preparationsias coachingsustainable developmentenvironmentcsecow dung compostchhattisgarhdown to earthvillage developmentscienceupsccentre for science and environment
Description: तो आइए पहले समझ लेते हैं कि गोधन न्याय योजना क्या है ? छत्तीसगढ में 20 जुलाई, 2021 को गोधन न्याय योजना की नींव डाली गई। योजना का मकसद पशुपालकों की मदद और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाना तय किया गया। योजना में कई और मकसद भी हैं, जैसे आवारा पशुओं पर नियंत्रण, गोबर से बिजली बनाना आदि। बहरहाल योजना के तहत लोगों के प्रोत्साहन के लिए हर एक ग्राम पंचायत में गायों को रखने की जगह यानी गोठान बनाने की पहल शुरु की गई। कहा गया कि वहां गायों के लिए चारा-पानी मौजूद रहेगा। गोठान में पशुओं के गोबर को हर दिन एकत्र किया जाएगा और गोबर का इस्तेमाल वर्मीकंपोस्ट और सुपरकंपोस्ट खाद बनाने के साथ गोबर के अन्य उत्पाद जैसे गमला, दिया, अगरबत्ती आदि बनाने में भी किया जाएगा। बाद में गोबर का एक और इस्तेमाल यानी गोबर से बिजली बनाने की परियोजना भी इसमें जोड़ी गई। अब सवाल है इतना सबकुछ इस योजना में होगा कैसे ? यह तय हुआ कि शहर और गांव में गोठानों को चलाने के लिए समितियां होंगी। इस समिति में हर तरह के लोग होंगे। 13 सदस्यीय समिति में उसके प्रबंधक, गांव से गाय लाने वाले चरवाहा और पशुओं को चारा देने वाले पशु मित्र भी होंगे। इस समिति के अलावा गोठान में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं भी होंगी। एक एसएचजी में 12 महिलाएं तय की गई हैं। इनकी भागीदारी गोबर एकत्र करने से लेकर खाद और गोबर उत्पाद तैयार करने तक की तय की गई है। तो अब तक आप गोधन न्याय योजना के बारे में अच्छे से समझ गए होंगे। अब आपको बताते हैं कि गोबर केंद्रित इस योजना ने डेढ़ बरस में अभी तक कितना प्रभाव छोड़ा और इसकी अर्थव्यवस्था कितनी बढ़ पाई ? छत्तीसगढ़ सरकार ने 5 फरवरी, 2022 को गोधन न्याय योजना की एख समीक्षा बैठक की। इस बैठक में बताया गया कि कुल 62.6 लाख कुंतल गोबर खरीदा गया जिसके बदले 125 करोड़ रुपए अब तक जारी किए गए, जिसमें से 118 करोड़ रुपए का ही भुगतान हो पाया। इसके तहत 2,04,034 पशुपालक लाभान्वित हुए। अब सवाल है कि इस 62.6 लाख कुंतल गोबर का क्या हुआ और क्या इससे वाकई ग्रामीण अर्थवयवस्था को उछाल मिला? सरकार ने राज्य में अब तक 10,591 गोठान स्वीकृत किए हैं। इनमें 74 फीसदी यानी 7898 गोठान ही बन पाए हैं। जबकि 6926 गोठान ही ऐसे हैं जहां गोबर खरीदने की व्यवस्था हो पाई है। डीईटी का विश्लेषण बताता है कि 20 जुलाई, 2020 से 30 नवंबर, 2021 तक यानी योजना के शुरुआती कुल 16 महीनों में गोबर खरीदने की दर प्रति month 3.5 लाख कुंतल थी, जो कि दिसंबर, 2021 से फरवरी, 2022 तक 2.5 लाख कुंतल प्रति महीना आ गई है। यानी स्कीम के तहत गोबर खरीदने का काम और उससे खाद तैयार करने का काम पिछले कुछ महीनों से मंद पड़ रहा है। डीटीई ने रायपुर, दुर्ग, बेमेतरा और कबीरधाम में यात्रा के दौरान पाया कि ज्यादातर गोठाना पर न चारा है न पानी। न ही वहां पशु उपलब्ध हैं। कुछ जगहों पर मनरेगा के तहत गोठान निर्माण का काम जारी है और समितियों की अनुशंसा विकास कार्यालयों को भेजी गई हैं। खेतों में और सड़कों पर आवारा पशुओं की शिकायतें भी ग्रामीण क्षेत्रों में मिलती रहीं। सरकारी आंकड़ों की छानबीन बताती है कि 15 फरवरी तक खरीदे गए 62.6 लाख कुंतल गोबर में 52 फीसदी सिर्फ सात जिलों से ही गोबर खरीदा गया। यानी शेष 48 फीसदी में छत्तीसगढ़ के कुल 21 जिले हैं, जो ज्यादातर ग्रामीण जिले हैं। डीटीई ने पयाा कि खरीदे गए 99 फीसदी गोबर का इस्तेमाल खाद बनाने में किया जा रहा है और शेष 1 फीसदी गोबर के अन्य उत्पाद जैसे दाह संस्कार में इस्तेमाल होने वाले गोबर के लट्ठे, दीए, गमले, अगरबत्ती, गोबर से बिजली आदि के लिए किया जा रहा है। गोबर से तैयार की जा रही खाद दो तरह की है। पहली वर्मीकंपोस्ट औऱ दूसरी सुपर कंपोस्ट। वर्मीकंपोस्ट यानी केंचुएं से तैयार होने वाली और सुपर कंपोस्ट यानी गोबर को बायो डीकंपोजर से सड़ाकर तैयार की जाने वाली खाद। एक किलो वर्मीकंपोस्ट खाद की कीमत 10 रुपए और एक किलो सुपर कंपोस्ट खाद की कीमत 6 रुपए रखी गई है। गोठानों से इन खाद को खरीदने के लिए वन विभाग, उद्यान विभाग, कृषि विभाग आदि विविध सरकारी एजेंसियों को आदेश दिए गए हैं, इसके अलावा किसानों को खाद खरीद में 10 फीसदी हिस्सा इन खाद को खरीदना अनिवार्य किया गया है। अब यह समझते हैं कि यह खाद का इस्तेमाल कैसे हो रहा है? सरकार ने 62.6 लाख कुंतल गोबर से करीब 23 लाख कुंतल खाद बनाने का लक्ष्य रखा था। हालांकि, सिर्फ 16 लाख कुंतल ही खाद बन पाई। इसमें से भी 6.5 लाख कुंतल खाद अभी स्टॉक में है। और सबसे ज्यादा स्टॉक भी शहरी रायपुर और दुर्ग डिवीजन के जिलों में है, जहां खाद निर्माण ज्यादा हुआ। सरकारी एजेंसियां इस खाद को खरीदने में रुचि कम कर रही हैं। वहीं, गोठान भी अब ठंडे पड़ रहे हैं. जयादातर गोठानों में वर्मीकंपोस्ट के पिट भरे हुए ही मिले। अब इस गोठान से जुड़ी एक और कड़ी स्वयं सहायता समूह के लाभ की बात करते हैं। छत्तीसगढ़ के रायपुर से 50 किलोमीटर दूर स्थित बनचरौदा एक आदर्श गोठान है। यहां कोविड के लॉकडाउन से पहले गोबर के दीए, गमले, अगरबत्ती, आदि बनाए जाते थे। हालांकि, अब सबकुछ बंद है क्योंकि मार्केट चेन नहीं है। 200 से अधिक स्वयं सहायता समूह की महिलाएं यहां जुड़ी थी। हालांकि एक ही स्सवयं सहायता समूह की महिलाओं को वर्मीकंपोस्ट बेचकर डेढ़ लाख मिले जिसके 10 हिस्से लगाए गए। यानी एक महिला को करीब 15 हजार रुपए मिले। एक महीने में करीब 1200 रुपए की आमदनी हुई और साल में यह 12 हजार रुपए बैठे।